भगवत् कृपा हि केवलम् !

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Wednesday 17 January 2018

विश्लेषण - न्यायिक आस्था पर सवाल या बवाल ??

पाठक मित्रो मैंने सोचा क्यों न सुप्रीम कोर्ट के जजों के उस विवाद का विश्लेषण किया जाय जो 5 दिन बीत जाने के बाद भी नहीं सुलझा है. तो लीजिये प्रस्तुत है इस मामले पर मेरा भी विश्लेषण ....

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ 4 जजों द्वारा प्रेस कॉन्फ्रेंस करने के बाद, पूरे देश में न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर बहस हो रही है. इस बीच इस विवाद को सुलझाने की कोशिशें लगातार हो रही हैं.  लेकिन ये विवाद अब तक पूरी तरह सुलझ नहीं पाया है. जिस दिन से सुप्रीम कोर्ट के 4 वरिष्ठ जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके चीफ जस्टिस पर आरोप लगाए थे. उसी दिन से मीडिया में बहुत से कयास लगाए जा रहे हैं. इस पूरी Controversy को लेकर बहुत सी Theories चल रही हैं. लेकिन अभी तक आपको किसी ने ये नहीं बताया होगा कि असल में ये पूरा विवाद किस वजह से हुआ? आज हमारे पास इस विवाद की Inside Story है. जो हम आपको आगे दिखाएंगे. लेकिन सबसे पहले आपके लिए ये जानना ज़रूरी है कि इस मामले में आज (मंगलवार, 16 जनवरी) क्या हुआ?

आज (मंगलवार, 16 जनवरी) सुबह चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने अपने खिलाफ प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाले चारों जजों से मुलाकात की. अदालत की कार्यवाही शुरू होने से पहले ये जज आपस में मिले और इनके बीच करीब 25 मिनट तक बातचीत हुई. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और चार जजों के बीच क्या बातचीत हुई, ये तो किसी को नहीं पता. लेकिन चीफ जस्टिस ने बाकी जजों को आश्वासन दिया है कि सभी मसलों पर विचार विमर्श करके हल निकाला जाएगा. माना जा रहा है कि कल सुबह ये चारों जज एक बार फिर से चीफ जस्टिस से मिलेंगे. इससे पहले कल (सोमवार, 15 जनवरी) Attorney General... K. K. Venugopal ने दावा किया था कि जजों का ये विवाद पूरी तरह से सुलझ गया है, और अब सब कुछ सामान्य है. लेकिन आज उन्होंने अपनी बात से पलटते हुए कहा कि अभी इस विवाद को सुलझने में 2 से 3 दिन और लगेंगे.

अब आपको ये बताते हैं कि इस पूरे विवाद की असली वजह क्या है? शुक्रवार यानी 12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट के 4 वरिष्ठ जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके ये आरोप लगाया था कि चीफ जस्टिस कुछ खास मामलों को, अपनी पसंद के जजों के पास सुनवाई के लिए भेजते हैं. लेकिन उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपना असली दर्द नहीं बताया.. और आज हम आपको इसी दर्द के बारे में बताएंगे.

इन जजों और चीफ जस्टिस के बीच विवाद तो बहुत पहले से चल रहा था. लेकिन 12 जनवरी को इन जजों का मतभेद खुलकर सबके सामने आ गया. 11 जनवरी की शाम को.. यानी प्रेस कॉन्फ्रेंस से एक दिन पहले चीफ जस्टिस ने 5 जजों के नाम की एक संवैधानिक पीठ के गठन की तैयारी कर ली थी. और 12 जनवरी की सुबह इसे अंतिम रूप देते हुए सुप्रीम कोर्ट के एडिशनल रजिस्ट्रार ने अपने हस्ताक्षर करके एक नोटिस जारी कर दिया. इस नोटिस में 5 जजों के नाम संवैधानिक पीठ में शामिल किए गए थे और इस बेंच को कुल 8 मामलों की सुनवाई करनी है. ये 5 जज थे - खुद चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए के सीकरी, जस्टिस ए एम खानवेलकर, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण. लेकिन यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि चीफ जस्टिस के बाद 4 Senior Most जजों का नाम इस बेंच में शामिल नहीं था. यानी जस्टिस जे चेलमेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ का नाम इस संविधान पीठ में शामिल नहीं था.

आमतौर पर सुप्रीम कोर्ट में संविधान पीठ जब गठित की जाती है, तो उसमें चीफ जस्टिस के अलावा बाकी जजों में Senior Most जजों को प्राथमिकता दी जाती है. लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हुआ. यहां आपके लिए ये समझना ज़रूरी है कि ये चारों जज चीफ जस्टिस के बाद सबसे सीनियर हैं. सुप्रीम कोर्ट में जजों की वरिष्ठता यानी Seniority का भी एक क्रम होता है. इसमें नंबर 1 पर चीफ जस्टिस होते हैं और उसके बाद के क्रम Seniority के हिसाब से तय होते हैँ. सुप्रीम कोर्ट में फिलहाल कुल 25 जज हैं. और इस हिसाब से 25 वें नंबर के जज सबसे जूनियर जज हैं.

इस लिहाज़ से प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाले चारों जज नंबर 2, नंबर 3, नंबर 4 और नंबर 5 पर हैं. लेकिन जो संविधान पीठ बनाई गई, उसमें इन चारों जजों के बजाए... इनके जूनियर जजों को उस बेंच में रखा गया. और ये जूनियर जज Seniority में नंबर 6, नंबर 17, नंबर 18 और नंबर 19 पर हैं.  जैसे ही संवैधानिक पीठ के गठन का नोटिस इन वरिष्ठ जजों को मिला, तो 12 जनवरी को ही ये चारों जज सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस से मिलने पहुंच गए. और इन जजों ने इस संवैधानिक पीठ के गठन पर ऐतराज़ जताया. लेकिन संवैधानिक पीठ में जजों के नाम में कोई फेरबदल नहीं हुआ और इसी के बाद इन जजों ने 12 जनवरी की दोपहर में.. सवा 12 बजे चीफ जस्टिस के खिलाफ प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दी.

नोट करने वाली बात ये है कि इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में इन जजों ने संवैधानिक पीठ के गठन का ये मुद्दा नहीं उठाया और सिर्फ यही कहा कि चीफ जस्टिस कुछ खास मामलों को अपनी पसंद के जजों के पास भेज रहे हैं. अब आपको उन मुख्य मामलों के बारे में बताते हैं, जिन पर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा द्वारा गठित संवैधानिक पीठ को सुनवाई करनी है.
इनमें सबसे पहला मामला है आधार का, जिसमें इस बात पर सुनवाई होनी है कि क्या आधार से आम नागरिक की निजता के अधिकार का उल्लंघन होता है ? दूसरा मामला है केरल में शबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का. और तीसरा मामला है IPC की धारा 377 यानी समलैंगिकता की परिभाषा में संशोधन का. इसके अलावा 5 और मामलों की सुनवाई भी इसी संविधान पीठ को करनी है. संविधान पीठ.. कल यानी बुधवार (17 जनवरी) से.. एक एक करके इन मामलों पर सुनवाई करेगी.

वैसे ये पहली बार नहीं हुआ है.. जब किसी महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई जूनियर जजों को सौंपी गई हो. हमारे पास कुछ उदाहरण हैं. सबसे बड़ा मामला है पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या का. इस मामले की मुख्य दोषी नलिनी और बाकी दोषियों ने 1998 में अपनी फांसी की सज़ा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी. लेकिन उस वक्त भी चीफ जस्टिस ने इस High Profile मामले की सुनवाई के लिए... तीन जूनियर जजों के पास भेजा था. उन जजों के नाम थे - जस्टिस K T थॉमस, जस्टिस DP वाधवा और जस्टिस SSM कादरी.

इसके अलावा 1999 में CBI ने बोफोर्स मामले में जब नई चार्जशीट दाखिल की, तो उद्योगपति श्रीचंद हिंदुजा और गोपीचंद हिंदुजा को आरोपी बनाया गया. Trial Court से ज़मानत नहीं मिलने के बाद हिंदुजा भाई.. सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. और फिर तत्कालीन चीफ जस्टिस ने इस मामले को जूनियर जज MB शाह को सौंपा. लेकिन उस वक्त भी इस पर किसी ने सवाल नहीं उठाए थे.

2007 में जब सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस हुआ, तो सुप्रीम कोर्ट में उसके भाई ने एक Writ Petition दायर की. ये मामला भी उस वक्त बहुत High Profile था और राजनीति से प्रभावित था. लेकिन इस मामले की सुनवाई भी जूनियर जज जस्टिस तरुण चैटर्जी ने की थी.

2010 में 2G घोटाले का केस भी उस वक़्त के जूनियर जज, जस्टिस GS सिंघवी की बेंच को दिया गया था.

बाबरी मस्जिद केस में जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लालकृष्ण आडवाणी और बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं को साज़िश के आरोपों से मुक्त किया तो CBI ने 2011 में फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की. और उस वक्त ये मामला भी जूनियर जज जस्टिस टीएस ठाकुर और जस्टिस वीएस सिरपुरकर की बेंच को दिया गया.

2012 में कोयला घोटाले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर हुई. उस याचिका को भी उस वक्त के जूनियर जज RM लोढ़ा ने ही सुना था.

ये लिस्ट बहुत लंबी है. और इससे ये साफ होता है कि सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में पहले भी महत्वपूर्ण मामले जूनियर जजों को सुनवाई के लिए दिए जाते रहे हैं. लेकिन इतना हंगामा कभी नहीं हुआ. सवाल ये है कि अचानक इतना विवाद क्यों हो रहा है और ये विवाद मौजूदा चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के साथ ही क्यों हो रहा है?

यहां हम आपको ये याद दिलाना चाहते हैं कि 12 जनवरी को अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में सुप्रीम कोर्ट के इन चारों जजों ने अपनी दो महीने पुरानी एक चिठ्ठी भी सार्वजनिक की थी, और इस चिठ्ठी में इन जजों ने जो सबसे महत्वपूर्ण बात कही थी.. वो ये थी कि चीफ जस्टिस के पास अलग अलग Cases को अपने विवेक से.. अलग अलग जजों के पास भेजने का अधिकार है.. लेकिन सुप्रीम कोर्ट में सभी जज बराबर हैं और मुख्य न्यायाधीश इनमें सबसे पहले हैं, वो ना तो किसी जज से ज्यादा हैं और ना ही कम.

ये लाइने मैं एक बार फिर आपको पढ़कर सुनाना चाहता हूं
शायद ये चारों जज न्यायशास्त्र के इस सिद्धांत को भूल गए. क्योंकि अगर ये जज.. खुद इस सिद्धांत को मानते हैं तो फिर उन्हें इस बात से कोई समस्या नहीं होनी चाहिए.. कि महत्वपूर्ण मामलों को, उनके बजाए.. दूसरे जजों को दिया जा रहा है.

ज़रा गौर फरमाए :)

"आपकी मीडियाबाजी में सुप्रीम कोर्ट की कोई सूरत बदलने की कोशिश तो दिखी नहीं। माफ़ कीजिए मीलॉर्ड, ऐसा लगा कि सिर्फ हंगामा करना ही मकसद था।" #JudgesPressConference

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