भगवत् कृपा हि केवलम् !

भगवत् कृपा हि केवलम् !

Monday 30 April 2018

बुद्ध के नाम पर घृणा फैलाते नवबौद्ध !

सनातन धर्म के अंतर्गत ही बौद्ध सम्प्रदाय की स्थापना करने वाले महात्मा बुद्ध की जयंती #बुद्धपुर्णिमा की ढेरों शुभकामनाएं

आजकल भगवान गौतम बुद्ध  के तथाकथित अनुयायीओ अर्थात नवबौद्धों और उसमें भी खासकर भीमटो ने हिन्दू धर्म पर अनर्गल टिप्पणी करने हिन्दू देवी देवताओं का अपमान करने, ब्राह्मणों, क्षत्रियो, वैश्यों को गाली देने को ही बुद्धिजम समझ लिया है । इन भीमंटो तथा कुछ दलित नेताओ ने दलितों को हिन्दुओ से अलग करके उन्हें भड़काकर राजनीति की रोटियां सेंकनी शुरू कर दिया है । बुद्ध के नाम पर नवबौद्ध आजकल हिन्दू समाज में नफरत और घृणा फैला रहे है ।

समस्या क्या बुद्ध को मानने से मतलब है चाहे विष्णु का अवतार मान ले या महात्मा मान ले या इंसान ही मान ले, और बुद्ध को आये हुए दुनिया में मात्र 2500 वर्ष हुए है । क्या उसके पहले इनके बाप दादाओं का धर्म नही था वे लोग अधर्मी थे? और कैसे यह मान ले की बौद्ध कोई धर्म है जब स्वयं बुद्ध ने स्वयं को सनातनी कहा है। "ऐसो धम्मो स्नातनो" तो अलग धर्म बना कर कब्जा तो नवबौद्धों ने किया है बुद्ध पर न की ब्राह्मणों ने,  यह दो कौड़ी की स्टोरी अब नही चलेगी समाज में। लोगो को बेवकूफ बनाना बंद करिये आप लोग। बौद्धिजम और जैनिज़्म सनातन धर्म ही है बुद्ध और महावीर इस धर्म के शुद्धि करता थे। इनको अलग मानकर इनके नाम पर जिन्होंने दूकान चलाई धूर्त वो है और ठग है।

ब्राह्मण वाद की नौटंकी रचनेवाले नावभोदुवे मुझे इतना बता दे की समस्त बौद्ध और जैन साहित्यों के रचनाकार कौन है?  क्योंकी बौद्ध तो धम्म है अर्थात सिद्धान्त पथ न की कोई धर्म बुद्ध का धम्म सनातन था ऐसा उन्होंने स्वयं कहा है। तो क्या आज कल के ये नवभोदुवे बुद्ध से ज्यादा होशियार हो गए है ?

समस्त बौद्ध साहित्यों के रचनाकार और बौद्ध मत में विभिन्न पथो यथा महायान हीनयान बज्रयान आदि के प्रवर्तक ब्राह्मण ही है। बुद्ध के प्रिय शिष्य अग्निमित्र ब्राह्मण, बुद्ध के प्रथम 4 शिष्य ब्राह्मण, बुद्ध के विहारों के लिए सर्वाधिक भूमि का दान करने वाले ब्राह्मण , बुद्ध की प्रमुख संगतियों के आयोजक ब्राह्मण। बुद्ध के ज्ञान देशना का सम्हालकर रखने वाले ब्राह्मण । फिर भी इन नावभोदुओ को कीड़ी कटती है ब्राह्मणो के नाम पर, अरे ब्राह्मण बुरा है क्यों मानते हो की कोई बुद्ध भी है। क्योंकी बुद्ध के सम्बन्ध में ज्ञान और समस्त ग्रन्थ तो ब्राह्मणो ने लिखा है। उनके मत को विभिन्न सम्प्रदायो के साथ समाज में प्रचारित ब्राह्मणों ने ही  किया। इस लिए बौद्ध धम्म कैसे सही हो गया अगर ब्राह्मण गलत है तो। किसी की उपेक्षा इस बात से नही हो सकती की वह अमुक जाती है और यार आप लोगो का फर्जीपन तो इसी बात से झलक जाता है जब आप लोग जातिगत बकवास करते है। जबकि बुद्ध ने जाती से ऊपर उठ कर मानवता की बात की तो ढोंगी कौन है आप या ब्राह्मण? अगर ब्राह्मण जातिवाद करता है तो आप क्या करते हो ??
बनेंगे बौद्ध और दिन भर जाती जाती ब्राह्मण ब्राह्मण यह ढोंगिज्म हो सकता है बौद्धिजम किसी सूरत में नही कहा जा सकता।

बुद्ध पूर्णिमा की ढेरों बधाई एवं शुभकामनाएं !

अजय कुमार दूबे

Monday 16 April 2018

आओ सुनाएँ ड्रैगन कथा

चीन को #ड्रैगन का देश कहा जाता है पर क्या कभी किसी ने वास्तव में ड्रैगन देखा है? ड्रैगन कोई जीव था भी क्या? तो फिर ये ड्रैगन नामक काल्पनिक जीव आया कहाँ से ...?? जो भी हो इस काल्पनिक जीव ड्रैगन का चित्र तो उपलब्ध है जिसका प्रयोग चीनी इतिहास एवं चीनी वस्तुकला में अक्सर देखने को मिल ही जाता है । पिछले दिनों मुझे एक चाइनीज #बौद्ध_मंदिर में जाने का अवसर मिला,  वहाँ उस मंदिर की वस्तुकला में ड्रैगन के काल्पनिक चित्र को प्रमुखता से प्रदर्शित किया गया था । ड्रैगन का चीनी वास्तुकला में इतना प्रभावी स्थान देखकर मुझे इस काल्पनिक जीव "ड्रैगन" के बारे में जानने की इच्छा हुई, फिर जो जानकारी मुझे पता चली आज उसको आप सभी के साथ साझा कर रहा हूँ ☺️☺️

चीनी लोग अपने को ड्रैगन का वंशज कहते हैं, यह कथन प्राचीन चीनी राष्ट्र के टोटेम व उस से जुड़ी दंतकथा पर आधारित है । दंतकथा के अनुसार चीन के पूर्वज हुंग ती द्वारा मध्य चीन का एकीकरण किया जाने से पहले चीनी राष्ट्र का टोटेम यानी गणचिंह भालू था, कबीली राजा छियु को पराजित कर मध्य चान का एकीकरण करने के बाद हुंग ती ने अपने पक्ष में आ मिले विभिन्न कबीलों को मनाने के लिए टोटेम के लिए भालू का त्याग कर एक नया चिंह ले लिया, वह था ड्रैगन । ड्रैगन की आकृति भालू के सिर और सांप के शरीर को मिला कर बनायी गई थी । प्राचीन चीनी भाषा में सांप का नाम चो था, उस का उचारण छो भी था, जिस का दूसरा अर्थ पुल था । हुंगती के निधन के बाद उसे छोशान यानी पुल का पहाड़ जगह दफनाया गया । इस से सिद्ध हुआ है कि हुंगती अपनी मातृ गन चिंह की पूजा करते थे । ड्रैगन वाला टोटेम हुंगती के पितृ व मातृ टोटेमों का मिश्रित रूप था । ड्रैगन की आकृति बहुत विशेष रूप की थी, इस में चीनी राष्ट्र के विकास की प्रक्रिया में विभिन्न जातियों के महा विलय की प्रक्रिया अभिव्यक्त होता है ।

     कालांतर में चीनी राष्ट्र का प्रतीक होने वाले ड्रैगन का चिंह विभिन्न चित्रों में व्यक्त हुए और धीरे धीरे इस की लिपि भी बनायी गई । चीन के प्राचीन राजवंश सांग की राजधानी के खंडहर की खुदाई में प्राप्त कच्छ खोलों तथा पशु हड्डियों पर खुले अक्षरों में ड्रैगन का शब्द भी उपलब्ध हुआ है । खुदाई में मिले सूदूर प्राचीन काल के चीनी मिट्टी के बर्तनों पर भी ड्रैगन की तस्वीरें देखने को मिली है । कुछ समय पहले  चीनी पुरातत्वी कार्यकर्ताओं ने उत्तर पूर्व चीन के ल्याओ निन प्रांत के फुसिन शहर के छाहाई प्राचीन खंडहर की खुदाई में दो चीनी मिट्टी के बर्तनों के टुकड़े मिले, जिन पर ड्रैगन के चित्र अंकित हैं, एक चित्र उड़ते हुए ड्रैगन का है और दूसरा कुंडली मारे ड्रैगन का, दोनों चित्र बहुत सजीव हैं, ड्रैगन के शरीर पर छिलकाओं की रेखाएं बहुत स्पष्ट दिखती है ।

    चीनी राष्ट्र के पूर्वजों का टोटेम बनने के बाद ड्रैगन चीनी राष्ट्र से जुड़ा हुआ है । ड्रैगन के संदर्भ में भी बड़ी मात्रा में दंतकथाएं और लोककथाएं उत्पन्न हो गई। एक दंतकथा के अनुसार चीनी राष्ट्र के एक पूर्वज सम्राट यान ती का जन्म तङ नाम की उस नारी से हुआ था, जो स्वर्ग लोक के दिव्य ड्रैगन के प्रभाव में आने के बाद गर्भवर्ती हुई थी । चीनी राष्ट्र के एक दूसरे पूर्वज हुंगती का जन्म इस के माता के सप्तर्षि ग्रह से प्रभावित होने के बाद हुआ था तथा महाराजा यो का जन्म उस की माता के लाल ड्रैगन से प्रभावित होने से हुआ तब इस तरह कहा जाए, तो चीनी राष्ट्र के पूर्वज ड्रैगन के वंशज थे, तभी तो उनकी संतानें भी अपने को  ड्रैगन के वंशज मानते है ।